27 दिसंबर 2024:
जनवरी 1991 में, भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। देश के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा बची थी, जो केवल दो सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त थी। इसी समय, प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी। डॉ. सिंह का वित्त मंत्री बनने का सफर बेहद रोचक रहा। आइए, इस ऐतिहासिक घटना के बारे में विस्तार से जानते हैं।
देश की आर्थिक स्थिति और राव का फैसला
20 जून 1991 की शाम, नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से उनके कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा मिले। चंद्रा ने राव को 8 पेज का एक टॉप सीक्रेट नोट सौंपा, जिसमें तत्काल ध्यान देने वाले मुद्दों का उल्लेख था। नोट पढ़ने के बाद राव चौंक गए और पूछा, “क्या भारत की आर्थिक हालत इतनी खराब है?” चंद्रा ने जवाब दिया, “सर, यह वास्तव में इससे भी ज्यादा खराब है।”
1990 के खाड़ी युद्ध के कारण तेल की कीमतें तिगुनी हो गई थीं। कुवैत पर इराक के हमले के बाद हजारों भारतीय मजदूरों को स्वदेश लौटना पड़ा, जिससे उनकी ओर से आने वाली विदेशी मुद्रा पूरी तरह बंद हो गई। राजनीतिक अस्थिरता और मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ आंदोलन ने भी हालात को और बिगाड़ दिया था। इन चुनौतियों से निपटने के लिए राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को चुना।
मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने का दिलचस्प किस्सा
अस्सी के दशक में भारत ने अल्पकालीन ऋण लिया था, जिसकी ब्याज दर तेजी से बढ़ गई थी। महंगाई दर भी 16.7% हो चुकी थी। ऐसे में राव एक पेशेवर अर्थशास्त्री को वित्त मंत्री बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने मित्र और इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पी. सी. अलेक्ज़ेंडर से चर्चा की। अलेक्ज़ेंडर ने दो नाम सुझाए—रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर आई. जी. पटेल और डॉ. मनमोहन सिंह। उन्होंने मनमोहन सिंह के नाम पर जोर दिया।
20 जून की रात जब अलेक्ज़ेंडर ने मनमोहन सिंह के घर फोन किया, तो पता चला कि वे यूरोप से लौटे ही थे और गहरी नींद में थे। सुबह साढ़े पांच बजे अलेक्ज़ेंडर ने उन्हें फिर फोन किया और मिलने की बात कही। जब वे मनमोहन सिंह के घर पहुंचे, तो सिंह दोबारा सो चुके थे। किसी तरह उन्हें जगाकर राव का संदेश दिया गया कि वे उन्हें वित्त मंत्री बनाना चाहते हैं। मनमोहन सिंह ने अलेक्ज़ेंडर से पूछा, “आपकी राय क्या है?” अलेक्ज़ेंडर ने कहा, “अगर मैं इसके खिलाफ होता, तो इतनी सुबह आपसे मिलने नहीं आता।”
नई जिम्मेदारी और बड़ी चुनौतियां
शपथ लेने से पहले राव ने मनमोहन सिंह से कहा, “मैं आपको पूरी आज़ादी दूंगा। अगर नीतियां सफल होती हैं, तो श्रेय सबको मिलेगा। लेकिन असफलता की स्थिति में आपको जाना पड़ेगा।” 24 जुलाई 1991 को, मनमोहन सिंह ने अपना पहला बजट पेश किया। उन्होंने खाद सब्सिडी में 40% कटौती की, और चीनी व एलपीजी के दाम बढ़ा दिए। अपने भाषण का अंत उन्होंने विक्टर ह्यूगो की मशहूर पंक्ति से किया, “उस विचार को कोई नहीं रोक सकता जिसका समय आ पहुंचा हो।”
डॉ. मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव ने मिलकर लाइसेंस राज को खत्म किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया।
मनमोहन सिंह का पूरा सफर
- 1954: पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर।
- 1957: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से इकॉनमिक्स ट्रिपोस।
- 1962: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डी. फिल।
- 1971: वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने।
- 1972: वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त हुए।
- 1982-1985: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर।
- 1985-1987: योजना आयोग के उपाध्यक्ष।
- 1987-1990: जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव।
- 1990: आर्थिक मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार।
- 1991: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष।
- 1991-1996: नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री।
- 1998-2004: राज्यसभा में विपक्ष के नेता।
- 2004-2014: भारत के प्रधानमंत्री।
डॉ. मनमोहन सिंह की कहानी भारतीय आर्थिक इतिहास में साहसिक फैसलों और नीतिगत क्रांति का प्रतीक है।
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